THOUGHTS

वाह रे मानव तेरा स्वभाव....




।। लाश को हाथ लगाता है तो नहाता है ...

पर बेजुबान जीव को मार के खाता है ।।
😊😊😊😊😊😊
यह मंदिर-मस्ज़िद भी क्या गजब की जगह है दोस्तो.
जंहा गरीब बाहर और अमीर अंदर 'भीख' मांगता है..
 😔विचित्र दुनिया का कठोर सत्य..👌👌
😊😊😊😊😊😊

     
बारात मे दुल्हे सबसे पीछे
      और दुनिया  आगे चलती है
मय्यत मे जनाजा आगे
        और दुनिया पीछे चलती है..

           यानि दुनिया खुशी मे आगे
          और दुख मे पीछे हो जाती है..!

😊😊😊😊😊😊😊

अजब तेरी दुनिया
गज़ब तेरा खेल


मोमबत्ती जलाकर मुर्दों को याद करना
और मोमबत्ती बुझाकर जन्मदिन मनाना...
Wah re duniya !!!!!


✴ लाइन छोटी है,पर मतलब बहुत बड़ा है ~

उम्र भर उठाया बोझ उस कील ने ...

और लोग तारीफ़ तस्वीर की करते रहे ..
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😊😊😊😊😊😊😊

✴  पायल हज़ारो रूपये में आती है, पर पैरो में पहनी जाती है

और.....

बिंदी 1 रूपये में आती है मगर माथे पर सजाई जाती है

इसलिए कीमत मायने नहीं रखती उसका कृत्य मायने रखता हैं.
😊😊😊😊😊😊😊
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✴  एक किताबघर में पड़ी गीता और कुरान आपस में कभी नहीं लड़ते,

और

जो उनके लिए लड़ते हैं वो कभी उन दोनों को नहीं पढ़ते....

😊😊😊😊😊😊😊😊
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✴  नमक की तरह कड़वा ज्ञान देने वाला ही सच्चा मित्र होता है,

मिठी बात करने वाले तो चापलुस भी होते है।

इतिहास गवाह है की आज तक कभी नमक में कीड़े नहीं पड़े।

और मिठाई में तो अक़्सर कीड़े पड़ जाया करते है...

😊😊😊😊😊😊😊😊
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✴  अच्छे मार्ग पर कोई व्यक्ति नही जाता पर बुरे मार्ग पर सभी जाते है......

*इसीलिये दारू बेचने वाला कहीं नही जाता ,*

*पर दूध बेचने वाले को घर-घर
गली -गली,कोने- कोने जाना पड़ता है*

😊😊😊😊😊😊😊😊
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✴  दूध वाले से बार -बार पूछा जाता है कि पानी तो नही डाला ?

पर दारू मे खुद हाथो से पानी मिला-मिला कर पीते है ।
😊😊😊😊😊😊😊😊
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💞🎶💞🎶💞💞🎶💞

👇Very nice line 👌


इंसान की समझ सिर्फ इतनी हैं
कि उसे "जानवर" कहो तो
नाराज हो जाता हैं और
"शेर" कहो तो खुश हो जाता हैं!

😊😊😊😊😊😊😊😊

GOOD TALK

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1. *_क़ाबिल लोग न तो किसी को दबाते हैं और न ही किसी से दबते हैं_*।

2. *_ज़माना भी अजीब हैं, नाकामयाब लोगो का मज़ाक उड़ाता हैं और कामयाब लोगो से जलता हैं_* ।

3. *_कैसी विडंबना हैं ! कुछ लोग जीते-जी मर जाते हैं_और कुछ लोग मर कर भी अमर हो जाते हैं* ।

4. *इज्जत किसी आदमी की नही जरूरत की होती हैं. जरूरत खत्म तो इज्जत खत्म* ।

5. *सच्चा चाहने वाला आपसे प्रत्येक तरह की बात करेगा*. *आपसे हर मसले पर बात करेगा लेकिन* *धोखा देने वाला सिर्फ प्यार भरी बात करेगा*।

6. *_हर किसी को दिल में उतनी ही जगह दो जितनी वो देता हैं.. वरना या तो खुद रोओगे, या वो तुम्हें रूलाऐगा_* ।

7. _*खुश रहो लेकिन कभी संतुष्ट मत रहो*_ । _

8. *अगर जिंदगी में सफल होना हैं तो पैसों को हमेशा जेब में रखना, दिमाग में नही*_ ।

9. *_इंसान_ अपनी कमाई के हिसाब से नही,अपनी जरूरत के हिसाब से गरीब होता हैं* ।
10. *_जब तक तुम्हारें पास पैसा हैं, दुनिया पूछेगी भाई तू कैसा हैं_* ।

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STUDENTS TALK

प्रत्येक व्यक्ति अलग होता है, हर किसी की क्षमता और कमजोरियाँ अलग-अलग होती है.
इसलिए न तो किसी और से अपनी तुलना करें. और न तो किसी और के जैसा बनने की कोशिश करें.

Every person is different, everyone has different abilities and weaknesses.
So, do not compare yourself with anyone.

Everyone is Unique.

जब समय हमारा इंतजार नहीं करता है, तो हम समय का इंतजार करने में अपना समय क्यों बर्बाद करें.

Time does not wait for us.

जिंदगी हमें हर दिन कोई न कोई सबक सिखाती है, इसलिए नहीं कि हम उस सबक को पढ़ें….
बल्कि इसलिए ताकि हम उस सबक से कुछ सीखें.

हर दिन जिंदगी से कुछ नया सीखें.

Learn something new on daily basis.

आप कितनी तेजी से आगे बढ़ रहे हैं, यह उस वक्त मायने नहीं रखता है. जब आप गलत रास्ते पर जा रहे होते हैं.

इसलिए समय-समय पर हमें यह गौर करना चाहिए कि हम सही रास्ते पर जा रहे हैं या नहीं.
जरूरतों को पूरा किया जा सकता है, लेकिन लालच की प्यास किसी तरह से नहीं बुझाई जा सकती है.

खुद के काम की तुलना अपने काम से करने वाले लोग, दूसरों से मीलों आगे निकल जाते हैं.
रिश्ता उस किताब की तरह होता है, जिसे लिखने में सालों लग जाते हैं.
लेकिन इस किताब के जलने में कुछ मिनट का हीं समय लगता है.
व्यक्ति मर जाता है, सभ्यताएँ बदल जाती है. लेकिन शब्द कभी निष्प्रभावी नहीं होते हैं.
व्यस्त होने से कोई व्यक्ति सफल नहीं हो सकता है, क्योंकि अगर वह बेकार से कामों व्यस्त है,
तो सफलता कभी उसके पास नहीं जाएगी.
बेकार की व्यस्तता असफलता की जननी होती है.

जिंदगी की परीक्षा में ज्यादातर लोग दूसरों की नकल करते हैं, इसलिए वे असफल हो जाते हैं.
क्योंकि जिंदगी में हर किसी का प्रश्न पत्र दूसरे के प्रश्न पत्र से अलग होता है.

जो मौलिक होता है, वही दूसरों से आगे निकल पाता है.

मुश्किलों में हिम्मत नहीं हारना चाहिए. बल्कि मुश्किलों पर पलटकर वार करना चाहिए.
पढ़ाई की उम्र में समय बर्बाद करने वाले लोग बाद में पछताते हैं.

कभी भी किसी को गिरकर उससे आगे बढ़ने की कोशिश मत कीजिए,
अगर आपको स्थाई जीत हाँसिल करनी है तो अपने दम पर सफलता पाने की कोशिश कीजिए.

छात्र जीवन जिंदगी का सबसे सुनहरा दौर होता है, क्योंकि इस दौर में न किसी बात की चिंता होती है, न मन में कटुता होती है.
इसलिए हर किसी को अपने छात्र जीवन का तुल्फ उठाना चाहिए.

कोई भी व्यक्ति हमारा प्रतिद्वन्द्वी नहीं होता है, हम खुद अपने प्रयासों के कारण आगे या पीछे रहते हैं.

आज के दौर में हर छात्र के लिए यह जरूरी हो जाता है कि वह मोबाइल और कंप्यूटर पर बेकार में समय बर्बाद न करे.
क्योंकि ऐसा करना उनके कैरियर को भी तबाह कर सकता है.

छात्र जीवन में यह बहुत जरूरी होता है कि आप बुरी चीजों से बचें.
क्योंकि इस उम्र में आपको सही या गलत में पूरी तरह फर्क करना नहीं आता है.

अच्छी जिंदगी बिताने के लिए वर्तमान को अच्छे ढंग से बिताना पड़ता है.

छात्र जीवन में प्यार के चक्कर में पड़ने से बचना चाहिए क्योंकि किशोरावस्था का प्यार अक्सर आकर्षण मात्र होता है.

पढ़ाई करना उबाऊ हो सकता है, लेकिन पढ़ाई करने से हीं हमारी जिंदगी बेहतर बनती है.

किसी और की नकल मत कीजिए, मौलिक बनिए…… केवल मौलिक बनकर हीं आप बड़ी सफलता पा सकते हैं.

निरंतर मेहनत करने से हीं हमारी क्षमता बढ़ती जाती है.

दोस्ती कम लोगों से कीजिए और दोस्ती केवल अच्छे लोगों से कीजिए.
क्योंकि बुरे लोगों से दोस्ती करने वाले लोग इसकी महँगी कीमत चुकाते हैं.

छात्र जीवन की छोटी-छोटी आदतें हमारे जीवन में बड़ा फर्क पैदा कर देती है.

किसी भी चीज को सीखना हमेशा कठिन होता है.

Communication के इस दौर में आपके लिए यह जरूरी हो जाता है कि आप Gossip करके अपना समय बर्बाद न करें.

SHIKSHA ME AARAKSHAN.

आजकल जितनी प्रतियोगी परीक्षाएँ हो रहीं हैं । मसलन जैसे आईआईटी ,aieee सीपीएमटी या जिस भी स्तर पर प्रतियोगी परीक्षाएँ आयोजित की जाती हैं जिससे देश की भावी पीढ़ी का भविष्य तय होता है।उसमे जो कट ऑफ लिस्ट सामने आती है ,वो दिमाग को झन्नाहट से भर देती है,। अभी आप केवल ए आई ईईई का ही उदाहरण लीजिये । जहां साधारण वर्ग (जनरल ) की कट ऑफ लिस्ट 48 रही , वहीं केटेगरी वर्ग (पिछड़ी जातियाँ ) की कट ऑफ लिस्ट 18 रही ... कितना अंतर था??? क्या जरूरी है ,साधारण वर्ग (जनरल मे) गरीबी नहीं है???? क्या जरूरी है उन बच्चों को अच्छा माहौल पढ़ने के लिए मिला हो???या उनमे दिमाग केटेगरी वाले बच्चों से ज्यादा हो ???? (क्या प्रकृतिक रूप से ऐसा हो सकता है ,मैं नहीं मानती ) आज के परिदृश्य  मे शिक्षा मे आरक्षण एक बडे असंतोष का कारण ही नहीं अपितु बच्चों के दिमागो मे जहर घोलने का काम भी करता है । जनरल वर्ग का बच्चा बहुत मेहनत करके भी कई बार कई प्रतियोगी परीक्षाओं मे पास नहीं हो पाता ,कारण  जनरल की कट ऑफ लिस्ट ऊंची चली जाती है , जबकि केटेगरी वर्ग के बच्चे थोड़ी सी मेहनत करके इन परीक्षाओं मे पास हो जाते हैं ,क्यूंकी कट ऑफ लिस्ट मे उन्हे आरक्षण मिला ! यही कारण बच्चों मे असंतोष पैदा करता है ,जो पूरे समाज के लिए घातक है । आरक्षण जाती –वर्ण के आधार पर नहीं वरन परिस्थितियों के आधार पर हो ,या सुविधा-या असुविधा के आधार पर हो । (उस पर भी कड़ी निगाह राखी जानी चाहिए ,ताकि किसी भी मासूम बच्चे के भविष्य के साथ कोई खिलवाड़ ना कर सके )

आरक्षण जैसी चीज का इस्तेमाल नेता-अपने -अपने वोट के लिए  या प्रभावशाली लोग अपने फायदे के लिए ज़्यादा करते हैं । इसलिए इस क्षेत्र मे आरक्षण समाप्त करके सबको एक ही द्रष्टि से देखा जाये , हाँ गरीबी के आधार पर इन्सानो को छूट अवश्य मिलनी चाहिए । पढ़ाई मे तेज ,बुद्धिमान बच्चों को पढ़ाई की मुफ्त सामाग्री के साथ-साथ शिक्षक भी अच्छे मिलने चाहियेँ। साथ ही उत्तम शिक्षा के लिए अच्छा वातावरण देना भी सरकार का काम होना चाहिए । आरक्षण वर्ग वाले बच्चों मे कोई कम दिमाग नहीं होता (केवल वर्ग के आधार पर )बल्कि हर जगह छूट मिलने की वजह से वो अपनी पूरी प्रतिभा का प्रदर्शन भी नहीं करते ।जिससे उनकी प्रतिभा के साथ ढंग से न्याय भी नहीं हो पाता ।

केन्द्र सरकार कई क्षेत्रों में आँकड़ों के ज़रिये अपने को विकासमान दिखाने की कोशिश में लगी रहती है। पर पिछले दिनों शिक्षा के क्षेत्र में उन्होंने माना कि अच्छी गुणवत्ता वाली शिक्षा का अभाव देश के ‘विकास’ में अहम चुनौती है। जनता के साथ फरेब करने वाली पूँजीवादी व्यवस्था के नुमाइन्दों को भी नंगी हो चुकी सच्चाइयों को मानना ही पड़ता है। मानव संसाधन मन्त्री कपिल सिब्बल ने कहा कि आज भी देश के 81 लाख 50 हज़ार से अधिक बच्चे स्कूली शिक्षा के दायरे से बाहर है। वहीं ग्रामीण विकास मन्त्री जयराम रमेश ने भी माना था कि आज भी देश के डेढ़ लाख सरकारी स्कूलों में शौचालय जैसी बुनियादी सुविधा नहीं है। अलग-अलग रिपोर्टों से पहले भी साबित होता रहा है कि देश के अधिकांशतः सरकारी स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं का बेहद अभाव है और सामान्य-सी बात है कि ऐसे हालात में इन स्कूलों की पढ़ाई का स्तर भी बेहतर नहीं हो सकता है। ऐसे में, केन्द्र सरकार जो नीतियाँ बना रही है और ‘शिक्षा के अधिकार कानून’ को जिस तरह बुर्जुआ मीडिया द्वारा एक महत्वपूर्ण पहल बताया जा रहा है, यह ज़रूरी है कि इन नौटंकियों की असलियत को समझा जाये।   इस कानून के तहत जिन नियमों को रखा गया है आइये देखें कि इस “अधिकार” से आखिर कैसी शिक्षा देने की तैयारी की जा रही है और क्या वास्तव में सभी बच्चों को स्तरीय शिक्षा मिल पायेगी।

पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने ‘शिक्षा का अधिकार कानून-2009’ को संवैधानिक तौर पर वैध ठहराते हुए कहा कि इस कानून में देश भर के सहायता प्राप्त और गैर सहायता प्राप्त निजी स्कूलों में गरीबों को 25 फीसदी निशुल्क सीटें समान रूप से मिलने की व्यवस्था है। कोर्ट ने कहा कि ‘शिक्षा का अधिकार कानून’ तत्काल प्रभाव से देश भर में लागू किया जाये। स्वयं मानव संसाधन विकास मन्त्री कपिल सिब्बल ने ख़ुशी जताते हुए कहा कि इस फैसले ने स्पष्टता लाते हुए सभी विवादों को समाप्त कर दिया है; शिक्षा जैसे बुनियादी सवाल पर सरकार का ‘‘नजरिया” सही साबित हुआ! सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से ऊपरी तौर पर लगता है कि उसे ग़रीबों के बच्चों की कितनी चिन्ता है। इस ‘चिन्ता’ की असलियत को हम आगे देखेंगे; पहले ज़रा देखें हमारे मीडिया और शिक्षाविदों ने इस फैसले पर क्या नज़रिया रखा। हर्षातिरेक में बुर्जुआ मीडिया के कर्ता-धर्ताओं ने इसे ‘जनहित की जीत’ के रूप में प्रचारित किया। देश के बड़े बुद्धिजीवियों ने कोर्ट के इस फैसले को ऐतिहासिक फैसला बताते हुए कुछ संशय भी रखे जैसे क्या वाकई इस कानून को निजी स्कूल सही तरीके से लागू करेंगे या दाखिला मिल भी जाये तो ग़रीबों के बच्चे महँगे स्कूलों के माहौल में सहज घुल-मिल पाएँगे? हम मानते है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा शिक्षा के अधिकार कानून को वैध ठहराने के बाद भी ग़रीबों के कुछ बच्चों को निजी स्कूलों में वाकई दाखिला मिल पायेगा या नहीं या ग़रीब बच्चे निजी स्कूल में सहज रहेंगे या नहीं, इन सवालों पर ज़्यादा माथापच्ची करना बेवकूफी है। जब तक पूरे देश में एक समान स्कूल व्यवस्था (यूनीफॉर्म स्कूल सिस्टम) लागू नहीं किया जाता, तब तक शिक्षा के अधिकार जैसे किसी भी अधिनियम का कोई अर्थ नहीं है। वर्तमान ‘शिक्षा का अधिकार कानून’ अपवादों को छोड़ दिया जाये तो बस साक्षर मज़दूर ही तैयार करेगा; यही ”विकासमान” भारतीय पूँजीवाद की ज़रूरत भी है। सुप्रीम कोर्ट और कपिल सिब्बल का नज़रिया भी यही है कि देश के शासन में बैठे परजीवी जमातों के बच्चे तो अच्छी शिक्षा पाकर अफसर बन राज करें और बहुसंख्यक मेहनतकश लोगों के बच्चे थोड़ा बहुत पढ़ना-लिखना सीख आधुनिक गुलाम बनने के लिए तैयार हो जायेँ।

असल में सरकार को अगर शिक्षा व्यवस्था में सुधार करना होता और राष्ट्र के कानून निर्माताओं को संविधान (हालाँकि संविधान ऐसी कई लफ्फाजियों से भरा पड़ा है) की तनिक भी परवाह होती तो संविधान में सार्वभौमिक प्राथमिक शिक्षा की बात को साकार किया जाता। सार्वभौमिक प्राथमिक शिक्षा की परिकल्पना समान स्कूली प्रणाली की अवधारणा से जुड़ी है। कोठारी आयोग ने भी शिक्षा के लिए समान स्कूल प्रणाली की सिफारिश की थी। प्राथमिक शिक्षा विचार निर्माण की बुनियाद एवं मानव व्यक्तित्व निर्माण की पूर्व शर्त है। किसी भी देश के निर्माण एवं सभी नागरिकों के जीवन को खुशहाल बनाने में बच्चों को समान एवं निशुल्क शिक्षा नींव का काम करती है। अगर कोई राष्ट्र वाकई अपने सभी बच्चों को समान मानता है तो उसे उनको शुरुआत में एकसमान और सार्वभौमिक शिक्षा का समान अवसर भी देना चाहिए, लेकिन भारत में आज़ादी के वर्षों बाद भी शिक्षा में ग़ैर-बराबरी सिर्फ बनी ही नहीं हुई है वरन् दिनों-दिन बढ़ती जा रही है।

दरअसल एक ऐसे समाज में जहाँ पूरा ढाँचा ही अधिकांश मेहनतकश जनता के अधिकतम शोषण और उत्पीड़न के बूते मुट्ठी-भर अमीरज़ादों की रंगरलियों का रंगमंच बना हो; जहाँ शासक-शोषक वर्ग लोगों की मेहनत की लूट पर जीता रहा हो; वहाँ सचेतन तरीके से एक भारी आबादी को शिक्षा से महरूम रखना शासक वर्ग की ज़रूरत है। आज की जर्जरगै़रबराबर शिक्षा के पीछे कोई अज्ञात शक्ति नहीं वरन् इसी शोषक और असमानतापूर्ण नीति की सुस्पष्ट कार्यवाही जिम्मेदार है। यह व्यवस्था भी जानती है कि शिक्षित आबादी अपने मानवीय अस्तित्व व अधिकार के प्रति सचेत होकर उसके लिए ख़तरा बन सकती है, अतः उसे उसके बचपन से ही ज्ञान-विज्ञान एवं तर्कणा से दूर रखकर केवल मुनाफा पैदा करने की मशीन बनाये रखो! सच तो यह है कि 25 फीसदी आरक्षण का शिगूफा अन्य कानूनी गुब्बारों की तरह ही फुस्स हो जायेगा और अगर यह एक बार को लागू भी हो गया तो शेष 75 फीसदी ग़रीब बच्चों ने क्या गुनाह किया है जिनको गुणवत्तापूर्ण शिक्षा से वंचित रखा जाये? अगर कोई देश अपने सभी बच्चों को समान मानता है तो उसे पूरे देश के बच्चों और नागरिकों के समक्ष एकसमान शिक्षा के एकसमान अवसर उपलब्ध कराने चाहिए न कि आरक्षण के झुनझुने से भ्रम पैदा करना चाहिए। दरअसल, ग़रीबों और अमीरों में बँटे समाज में निजी स्कूलों में ग़रीबों के बच्चों के लिए आरक्षण द्वारा ‘समावेशी शिक्षा’ नहीं वरन् सभी बच्चों को समान शिक्षा ही सच्चे मायने में शिक्षा का विकल्प होगी और देश के हर नागरिक और बच्चों को इससे कम कुछ भी देना शिक्षा के नाम पर धोखा होगा।

वास्तव में, निजी स्कूलों में कुछ ग़रीब बच्चों को आरक्षण देकर पढ़वाने की योजना लागू हो भी जाये तो यह ख़तरनाक योजना है। यह उन ग़रीब बच्चों को अमीरज़ादों के छोकरों का पिछलग्गू बनायेगी, उन्हें दास मानसिकता का शिकार बनायेगी और उन्हें भीतर-ही-भीतर बुरी तरह से कुण्ठित बना देगी। ऐसे बच्चे अपनी ग़रीबी को अपनी नियति मानेंगे और इसे नैसर्गिक मान बैठेंगे। वे बच्चे इस मानसिकता के साथ इस मुनाफाखोर पूँजीवादी व्यवस्था के खिलाफ कभी लड़ नहीं सकते। वे इसकी गुलामी करने के लिए व्यवस्थित तरीके से प्रशिक्षित किये जायेंगे।

इसलिए बुनियादी सवाल यह है कि देश के बच्चों को वर्ग और पैसे के आधार पर अलग शिक्षा दी ही क्यों जाये? बच्चों को एकसमान पाठ्यक्रम के आधार पर एकसमान मानकों और सुविधाओं से लैस बराबर के स्कूलों में शिक्षा क्यों न दी जाये? अगर पूँजीवादी प्रतिस्पर्द्धा के सिद्धान्त से भी चला जाये तो प्रतिस्पर्द्धा के असमान अवसर बचपन से ही बच्चों के सामने क्यों उपस्थित किये जायें? अगर ग़रीबों के बच्चे म्यूनिसपैलिटी के जर्जर, शिक्षकविहीन, कक्षाविहीन, शौचालयविहीन, ब्लैकबोर्ड-विहीन विद्यालयों में ”पढ़ेंगे” (चाहे शिक्षा के अधिकार के कानून के तहत ही सही!) तो क्या वे पब्लिक स्कूलों और कान्वेण्ट स्कूलों में पढ़ने वाले अमीरज़ादों के बच्चों से मुकाबला कर सकेंगे? क्या वे उच्च शिक्षा की मंजिल पर (यदि वे कभी वहाँ पहुँच सके!) उच्च वर्ग और उच्च मध्यवर्ग के बच्चों के साथ प्रतिस्पर्द्धा कर पाएँगे? कभी नहीं! साफ है कि मौजूदा पूँजीवादी व्यवस्था समाज में मौजूदा वर्ग पदानुक्रम को असमान स्कूल प्रणाली के ज़रिये बचपन से ही बच्चों की पूरी मानसिकता में पैठा देती है। बच्चे ग़रीबी, बदहाली, बेघरी, भुखमरी और कुपोषण को अपनी नियति मानने लगते हैं। यह बात अलग है कि आगे चलकर शासक वर्गों द्वारा पैदा किया गया यह वर्चस्व पूँजीवादी समाज और अर्थव्यवस्था के संकट के कारण टूटता भी है। लेकिन फिर भी स्कूल शिक्षा के दौरान ही मस्तिष्कों में बिठाये गये मूल्य आगे चलकर विशालकाय मेहनतकश वर्ग के बच्चों को दासवृत्ति का शिकार बनाते हैं और उनके अन्दर एक ऐसा वर्ग-बोध पैदा करते हैं, जिससे कि समाज में मौजूद अन्याय और असमानता को वे स्वीकार कर बैठें।

ऐसे में, सभी परिवर्तकामी नौजवानों को अपने संगठनों के ज़रिये यह माँग उठानी चाहिए कि भारत के सभी बच्चों को, चाहे वे किसी भी वर्ग, क्षेत्र, जाति या धर्म के हों, एकसमान स्कूल प्रणाली मिलनी चाहिए। यही आज के दौर में एक सही इंक़लाबी माँग हो सकती है। अन्य सभी माँगें, मिसाल के तौर पर, निजी स्कूलों में आरक्षण आदि की माँग से फौरी तौर पर भी कोई लाभ नहीं मिलता। उल्टे नुकसान ही होता है। इसलिए शासक वर्ग के इस ख़तरनाक ट्रैप में फँसने की बजाये हमें एकसमान स्कूल व्यवस्था की माँग करनी चाहिए। उच्च शिक्षा को बहुसंख्यक आबादी से दूर करते हुए तमाम सरकारें यही कारण बताती हैं कि वे इससे बचने वाले धन को प्राथमिक शिक्षा में निवेश करेंगी। यदि वाकई ऐसा है तो सरकार से यह माँग की जानी चाहिए कि वह सभी बच्चों को निशुल्क, स्तरीय और एकसमान स्कूल शिक्षा दे और सभी क्षेत्रों के बच्चों को उनकी भाषा में पढ़ने का अधिकार मुहैया कराये।

ATTITUDE TALK

Choosing to be positive and having a grateful attitude is going to determine how you're going to live your life.

My attitude is that if you push me towards something that you think is a weakness, then I will turn that perceived weakness into a strength.

Weakness of attitude becomes weakness of character.

Nothing can stop the man with the right mental attitude from achieving his goal nothing on earth can help the man with the wrong mental attitude.

Attitude is a little thing that makes a big difference.

Your attitude, not your aptitude, will determine your altitude.

There is little difference in people, but that little difference makes a big difference. The little difference is attitude. The big difference is whether it is positive or negative.

Develop an attitude of gratitude, and give thanks for everything that happens to you, knowing that every step forward is a step toward achieving something bigger and better than your current situation.

Everything can be taken from a man but one thing: the last of human freedoms - to choose one's attitude in any given set of circumstances, to choose one's own way.

A positive attitude causes a chain reaction of positive thoughts, events and outcomes. It is a catalyst and it sparks extraordinary results.

Morality is simply the attitude we adopt towards people whom we personally dislike.

It is not the body's posture, but the heart's attitude that counts when we pray.

People may hear your words, but they feel your attitude.

But the attitude of faith is to let go, and become open to truth, whatever it might turn out to be.

Character is the result of two things: mental attitude and the way we spend our time.

Our attitude towards others determines their attitude towards us.

Adopting the right attitude can convert a negative stress into a positive one.

Take the attitude of a student, never be too big to ask questions, never know too much to learn something new.

The reactionary is always willing to take a progressive attitude on any issue that is dead.

Ability is what you're capable of doing. Motivation determines what you do. Attitude determines how well you do it.

NEW YEAR TALK

Write it on your heart that every day is the best day in the year.

Your success and happiness lies in you. Resolve to keep happy, and your joy and you shall form an invincible host against difficulties.

Come, gentlemen, I hope we shall drink down all unkindness.

Sometimes too much to drink is barely enough.

New Year's Resolution: To tolerate fools more gladly, provided this does not encourage them to take up more of my time.

Let our New Year's resolution be this: we will be there for one another as fellow members of humanity, in the finest sense of the word.

Resolution One: I will live for God. Resolution Two: If no one else does, I still will.

All of us every single year, we're a different person. I don't think we're the same person all our lives.

I never worry about being driven to drink I just worry about being driven home.

Character is the ability to carry out a good resolution long after the excitement of the moment has passed.

First you take a drink, then the drink takes a drink, then the drink takes you.

I have no way of knowing how people really feel, but the vast majority of those I meet couldn't be nicer. Every once in a while someone barks at me. My New Year's resolution is not to bark back.

I don't even drink! I can't stand the taste of alcohol. Every New Year's Eve I try one drink and every time it makes me feel sick. So I don't touch booze - I'm always the designated driver.

If you asked me for my New Year Resolution, it would be to find out who I am.

I know. I'm lazy. But I made myself a New Years resolution that I would write myself something really special. Which means I have 'til December, right?

Each age has deemed the new-born year the fittest time for festal cheer.

A year from now, you're gonna weigh more or less than what you do right now.

LOVE TALK


Being deeply loved by someone gives you strength, while loving someone deeply gives you courage.

Keep love in your heart. A life without it is like a sunless garden when the flowers are dead.

Friends can help each other. A true friend is someone who lets you have total freedom to be yourself - and especially to feel. Or, not feel. Whatever you happen to be feeling at the moment is fine with them. That's what real love amounts to - letting a person be what he really is.

Sometimes the heart sees what is invisible to the eye.

Love is like a friendship caught on fire. In the beginning a flame, very pretty, often hot and fierce, but still only light and flickering. As love grows older, our hearts mature and our love becomes as coals, deep-burning and unquenchable.

Love is composed of a single soul inhabiting two bodies.

I have decided to stick with love. Hate is too great a burden to bear.

Affection is responsible for nine-tenths of whatever solid and durable happiness there is in our lives.

Immature love says: 'I love you because I need you.' Mature love says 'I need you because I love you.'

Where there is love there is life.

We're born alone, we live alone, we die alone. Only through our love and friendship can we create the illusion for the moment that we're not alone.

A loving heart is the beginning of all knowledge.

A man reserves his true and deepest love not for the species of woman in whose company he finds himself electrified and enkindled, but for that one in whose company he may feel tenderly drowsy.

I have found the paradox, that if you love until it hurts, there can be no more hurt, only more love.